क्लीनिकल मामले की निगरानी की जरूरत है और यह गंभीर मामला है: सुप्रीम कोर्ट

इंदौर
स्वास्थ्य अधिकार मंच द्वारा वर्ष 2012 में मध्य प्रदेश और देश भर में अनैतिक क्लीनिकल परीक्षणों के विभिन्न मुद्दों पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका स्वास्थ्य अधिकार मंच, बनाम भारत संघ व अन्य पर आज दिनांक 21-03-25 को न्यायमूर्ति पामीदीघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जयमालया बागची द्वारा सुनवाई की गई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संजय पारीख ने उल्लेख किया कि अधिनियमों और नियमों के बावजूद, भोपाल गैस पीड़ितों पर अनैतिक क्लीनिकल परीक्षण, एचपीवी वैक्सीन परीक्षण और इंदौर, जयपुर और देश के अन्य हिस्सों में हुए अनैतिक परीक्षणों से संबंधित कई मुद्दे अभी भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं। श्री पारीख ने यह भी उल्लेख किया कि हजारों क्लीनिकल परीक्षण विषयों की मृत्यु और शारीरिक दुष्परिणाम हो गई है और उनको मुआवजा नहीं मिला है । श्री पारीख ने बताया कि क्लिनिकल ट्रायल्स रूल २०१९  के लागू होने के बावजूद अभी तक क्लीनिकल ट्रायल के विषयों की भर्ती की कोई प्रक्रिया नहीं है, प्रायोजकों और जांचकर्ताओं की कोई जवाबदेही नहीं है, उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने का कोई प्रावधान नहीं है और मृत्यु और शारीरिक दुष्परिणाम होने पर अधिकांश लोगों को कोई  कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। स्वास्थ्य अधिकार मंच के अमूल्य निधि ने कहा कि इंदौर, जयपुर में अनैतिक क्लीनिकल ट्रायल में शामिल जांचकर्ताओं और एचपीवी वैक्सीन मामले शामिल स्पॉन्सर और इन्वेस्टिगेटर पर  अभी तक कार्रवाई पूरी  नहीं की गई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2005 से 2020 तक 6500 लोगों की मौतें क्लिनिकल ट्रायल के दौरान हुई है और सरकार ने मात्र 217 मृतकों को ही मुआवजा दिया गया है, इसी प्रकार गंभीर शारीरिक दुष्परिणाम के 27890 मामले सामने आए है और इनमे से किसी को भी मुआवजे का कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और निगरानी  का मुद्दा है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता स्वास्थ्य अधिकार मंच द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर विस्तृत जवाब चार सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए। इसी तरह, भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अनुसार, 2004-2008 में भोपाल गैस पीड़ितों पर क्लीनिकल परीक्षण किए गए थे। उनके अनुसार, 23 मौतें और 22 SAE हुए।

आर्थिक अपराध शाखा ने इंदौर के अस्पताल में 6 डॉक्टरों द्वारा 3307 लोगों पर किए गए 76 क्लीनिकल ट्रायल के संबंध में जांच की थी, जिनमें से 1833 बच्चे थे। इनमें से 81 को गंभीर दुष्प्रभाव हुए और उनकी मौत हो गई। आर्थिक अपराध शाखा की रिपोर्ट से पता चलता है कि दोषी डॉक्टरों को करोड़ों रुपए का भुगतान किया गया और विदेश यात्राएं प्रायोजित की गईं। हालांकि, प्रभावित परिवारों को मुआवजा नहीं दिया गया और न ही दोषी डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई पूरी  की गई। क्लीनिकल ट्रायल के लिए प्राप्त राशि में से महात्मा गांधी स्मृति महाविद्यालय के पत्र दिनांक 3.10.08 के अनुसार 10% राशि चिकित्सा शिक्षा विभाग में जमा की जानी थी, जो अभी विचाराधीन है और जमा नहीं की गई है। रिपोर्ट में स्वयं के लिए धन स्वीकार करने और प्रायोजित विदेश यात्राएं करने वाले प्रमुख अन्वेषक के खिलाफ चिकित्सा आचार संहिता विनियमन, 2002 और संशोधित अधिसूचना के तहत कार्रवाई करने की भी सिफारिश की गई है।
आंध्र प्रदेश और गुजरात में ह्यूमन पैपिलोमा वायरस का ट्रायल बिना सहमति के किया गया और उसपर सरकारी समिति ने जांच की थी और यह पाया था कि  आंध्र प्रदेश में 1,948 बच्चों के मामले में सहमति फॉर्म पर माता-पिता के अंगूठे के निशान थे, और 2,763 बच्चों के मामले में सहमति फॉर्म पर छात्रावास वार्डन के हस्ताक्षर थे। गुजरात के मामले में 6,217 फॉर्म पर हस्ताक्षर किए गए थे, 3,944 पर अंगूठे के निशान थे, और 545 पर अभिभावकों के हस्ताक्षर थे या उनके अंगूठे के निशान थे। इन फॉर्म पर गवाहों के हस्ताक्षरों के संबंध में और भी विसंगतियां पाई गईं। इसके बावजूद अब तक पूरी करवाई नहीं हुई और न ही जिनकी मृत्यु हुई और शारीरिक दुष्परिणाम हुए उन्हें मुआवजा मिला।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button